नई दिल्ली। बिहार में जिस तरह से मौतें हो रही है उससे यही कहा जा सकता है कि बिहार का स्वास्थ्य खराब हो गया है. सूबे के बड़े-बड़े सरकारी अस्पतालों की हालत ऐसी है जहां अगर आप आधे घंटे भी खड़े हो जाएं तो आपकी रूह कांप उठेगी. दो हफ्तों में बिहार में करीब 239 मौतें हो चुकी है. जिसमें 126 से अधिक बच्चें शामिल है. क्योंकि प्रदेश में लू के कहरके साथ कुछ जिलों में चमकी बुखार का प्रकोप पड़ रहा है. हालांकि, मंत्री जी हालातों का जायजा लेने के लिए दौरा कर रहे हैं. लेकिन इससे मौत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. क्योंकि मौत के आंकड़े बदस्तूर बढ़ ही रहे हैं.
बिहार के करीब पांच से छह जिलों में चमकी बुखार यानी की एईएस प्रकोप पड़ रहा है, जिससे लगातार बच्चों की जान जा रही है. अब तक के आकड़ों के मुताबिक, 126 बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं, लू के कहर से 113 लोगों की मौत हो गई है. इसलिए दो हफ्तों में 239 मौतें हो चुकी है.
सूबे के अस्पतालों में केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्य सरकार के मंत्री लगातार दौरा कर रहे हैं. मरीजों का हालचाल ले रहे हैं. लेकिन उन्हें अस्पतालों में मूलभूत कमियां नहीं दिख रही है. अस्पतालों के दौरों के दौरान वह केवल निर्देश दे रहे हैं. लेकिन मूलभूत समस्याओं में कमी को लेकर मंत्री जी क्या कदम उठा रहे हैं यह किसी को नहीं पता.
औरंगाबाद में लू से मरने वालों की संख्या सबसे अधिक करीब 50 पहुंच चुकी है. लेकिन जब बिहार सरकार के औरंगाबाद प्रभारी मंत्री बृजकिशोर बिंद ने जब सदर अस्पताल का दौरा किया तो उन्होंने व्यवस्थाओं को लेकर कहा कि वह संतुष्ट हैं. काम बेहतर हो रहा है. लेकिन सच यह है कि यहां कई दवाईंयों की कमी है और डॉक्टरों की संख्या कम है, साथ ही जरूरी इक्विपमेंट्स मौजूद नहीं हैं लेकिन मंत्री जी को इन सभी चीजों में कोई कमी नहीं दिखी. लेकिन लू से मरने वाले लोगों को लेकर अजीबोगरीब बयान जरूर दे दिया कि ‘गर्मी और लू दैवीय आपदा है, इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता है.’
वहीं, मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों से पूरा हॉस्पिटल भरा पड़ा है. आईसीयू की हालत ऐसी है कि यहां एक वेंटिलेटर पर दो-दो बच्चों का इलाज चल रहा है. अस्पताल में चार आईसीयू वार्ड है, जिन्हें देखने के लिए एक सीनियर डॉक्टर और बाकी जूनियर और इंटरर्न डॉक्टर के हवाले है. वहीं, वार्ड में देखभाल करने वाली नर्स भी इंटरर्न हैं जबकि अनुभवी नर्सों की कमी है.
ऐसे में सवाल है कि जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन और बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय एसकेएमसीएच अस्पताल का दौरा करने गए तो उन्हें यह सभी कमियां नहीं दिखी. साथ ही डॉक्टरों समेत यहां दवाई जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तत्काल क्या किया गया. क्योंकि बच्चों की मौत इन्हीं मूलभूत कमियों की वजह से तेजी से हो रही है. वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे का कहना है कि अभी बिहार में केंद्रीय स्वास्थ्य टीम की जरूरत नहीं है.
वहीं, सवाल यह भी है कि चमकी बुखार सूबे में करीब पांच सालों से अपना कहर बड़पा रहा है तो ऐसे में सरकार अब तक इस बीमारी का इलाज ढूंढ़ने में नाकाम क्यों है. अभी भी सरकार इस मामले में जांच और बीमारी पर रिसर्च के लिए एक साल का समय मांग रही है. सरकार अब क्यों टाइम लाइन दे रही है. सीएम नीतीश कुमार ने खुद कहा है कि कई सालों से यह बीमारी चल रही है पिछले सालों में मौत में कमी हुई थी लेकिन इस बार यह बढ़ गया है जो चिंताजनक है. आपको बता दें कि साल 2014 में चमकी बुखार से 355 मौंते हुई थी.