नई दिल्ली। चीन खूंखार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के मुद्दे पर तो मान गया, लेकिन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत को शामिल किए जाने पर उसका अड़ंगा जारी है. शुक्रवार को चीन ने कहा कि जब तक परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) में हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को लेकर किसी योजना पर कोई सहमति नहीं बन जाती है, तब तक भारत को एनएसजी में शामिल करने की कोई चर्चा नहीं होगी.
जब चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग से पूछा गया कि यह सहमति कब तक बन पाएगी, तो उन्होंने समय सीमा बताने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि इस मसले पर विस्तार से चर्चा करने की जरूरत है. लिहाजा वो इसको लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं.
जब चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कांग से पूछा गया कि क्या भारत के एनएसजी में शामिल किए जाने को लेकर चीन के रुख में बदलाव आया है. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि कजाख्तान के अस्ताना में चल रही एनएसजी की बैठक में भारत को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है. जब तक परमाणु अप्रसार संधि में हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को लेकर किसी योजना पर सहमति नहीं बन जाती है, तब तक एनएसजी में दूसरे देशों को शामिल करने को लेकर चर्चा नहीं होगी.
इस दौरान चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कांग ने कहा कि चीन भारत के एनएसजी में प्रवेश पर अड़ंगा नहीं लगा रहा है. चीन तो सिर्फ एनएसजी के नियमों और प्रक्रियाओं के पालन की बात कह रहा है. उन्होंने कहा, ‘चीन भारत ही नहीं, बल्कि किसी भी देश के एनएसजी में शामिल किए जाने पर अड़ंगा नहीं लगा रहा है. एनएसजी की प्रक्रिया और नियम हैं, जिनके मुताबिक सदस्य देश फैसला लेते हैं. मुझको लगता है कि अस्ताना में एनएसजी की बैठक चल रही है और इसमें गैर परमाणु अप्रसार संधि वाले देशों, राजनीतिक और कानूनी मुद्दों पर चर्चा होगी.’
जब चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से कहा गया कि एनएसजी के ज्यादातर सदस्य भारत को शामिल करने का समर्थन कर रहे हैं, जबकि चीन लगातार अड़ंगा लगा रहा है, तो इस पर उन्होंने कहा, ‘यह नहीं कहा जा सकता कि चीन एनएसजी में भारत के प्रवेश में अड़ंगा लगा रहा है. हालांकि मैं निश्चित रूप से यह कहूंगा कि एनएसजी एक बहुपक्षीय गैर परमाणु अप्रसार मैकैनिजम है, जिसके अपने नियम और प्रक्रिया हैं. सभी सदस्य देशों को एनएसजी के नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए. साथ ही कोई भी फैसला आम सहमति से लिया जाना चाहिए.’
आपको बता दें कि चीन समेत 48 देश एनएसजी के सदस्य हैं. यह समूह वैश्विक स्तर पर असैन्य कार्यों के लिए परमाणु सामग्री और तकनीक के आदान-प्रदान को सुनिश्चित करता है. एनएसजी का गठन भारत द्वारा साल 1974 में परमाणु परीक्षण किए जाने के विरोध में हुआ था.
भारत ने मई 2016 में एनएसजी की सदस्यता के लिए आवेदन किया था, जिसका चीन शुरू से ही विरोध कर रहा है. भारत के साथ ही पाकिस्तान ने भी एनएसजी की सदस्यता के लिए आवेदन किया है. चीन का कहना है कि एनएसजी में सिर्फ उन्हीं देशों को शामिल किया जाएगा, जिन देशों ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) में हस्ताक्षर किया है. भारत ने अब परमाणु अप्रसार संधि में हस्ताक्षर नहीं किया है.
इससे पहले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने के भारत के प्रयास पर चीन लंबे समय तक अड़ंगा लगाता रहा, लेकिन अंत में हारकर उसे हाल ही में अपने अड़ंगे को वापस लेना पड़ा था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया था. इसको भारत की बड़ी कामयाबी माना गया, जबकि पाकिस्तान की विफलता मानी गई.