दुनिया कोविड-19 महामारी से उबरती नजर आ रही है, लेकिन इसकी उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। एनर्जी, मेटल और अनाज आदि के दाम काफी बढ़ गए हैं। बड़े पैमाने पर इनका निर्यात करने वाले देशों को इससे फायदा हो रहा है। लेकिन उन देशों की परेशानी बढ़ गई है, जो इनका आयात करते हैं।
फूड की कीमतें 2011 से अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर
इस साल अब तक कमोडिटी के दाम 20% से ज्यादा बढ़े हैं। कच्चे तेल में करीब 50% उछाल आया है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, बीते 13 महीनों से खाने की चीजें लगातार महंगी हो रही हैं। फूड की कीमतें 2011 से अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर हैं। इसके चलते ब्लूमबर्ग कमोडिटी स्पॉट इंडेक्स करीब एक दशक की ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसने लगातार चौथे महीने तेजी दिखाई है। इससे रूस और सऊदी अरब जैसे बड़े तेल-गैस निर्यातकों के अच्छे दिन आ गए हैं। दूसरी तरफ भारत जैसे देशों का आयात बिल बढ़ गया है। महंगाई की समस्या गहरा गई है।
आयातकों को 41 लाख करोड़ का झटका
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स का अनुमान है कि इस साल 550 अरब डॉलर (करीब 40.93 लाख करोड़ रुपए) आयातक देशों से निकलकर निर्यातक देशों को ट्रांसफर होंगे। इसके मुकाबले पिछले साल कमोडिटी आयात करने वाले देशों से निर्यातकों को 280 अरब डॉलर (करीब 20.84 लाख करोड़ रुपए) मिले थे। इस मामले में करीब 100 फीसदी ग्रोथ देखी जाएगी।
यूएई को सबसे ज्यादा फायदा, बांग्लादेश को सर्वाधिक नुकसान
45 देशों के ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स सर्वे के मुताबिक, कमोडिटी की महंगाई बढ़ने से यूएई सबसे अधिक फायदे में है। वहीं, भारत, जापान और पश्चिमी यूरोप के ज्यादातर देशों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि उन्हें कमोडिटी के आयात पर ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नुकसान उठाने वाले पांच सबसे बड़े देश एशिया से होंगे, जिनमें वियतनाम और बांग्लादेश भी शामिल हैं।