गैंग्स ऑफ शेखावाटी: शराब के धंधे से शुरुआत, गुरु की मौत का बदला लेने की कसम… जानिए राजू ठेठ की क्राइम कुंडली

सीकर की धरती आज फिर से दहल उठी. शनिवार की सुबह राजू ठेठ की चार बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी. इस मर्डर की जिम्मेदारी लॉरेंस गैंस के सदस्य रोहित गोदारा ने ली है. लेकिन राजस्थान के शेखावाटी रीजन में गैंगवार का यह पहला केस नहीं है. बीते कुछ साल में शेखावाटी की धरती कई बार लहू से लाल हो चुकी है.

राजू ठेठ ने लोगों में अपना खौफ कायम करने के लिए ये तरीका अपनाया था कि वह जब भी कहीं निकलता था तो उसके चारों ओर बंदूक लिए उसके गुर्गे उसे घेरकर चलते थे. दुश्मनों के लिए उनका सीधा संदेश होता था कि बॉस की तरफ देखा तो तुम्हारे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे.

ऐसे हुई राजू ठेठ की अपराध की दुनिया में एंट्री

अपराध की दुनिया में राजू ठेठ की एंट्री और हत्या को समझने के लिए हमें 25 साल पहले यानी 1995 में जाना होगा. सीकर जिले का एसके कॉलेज, उस समय शेखावाटी की राजनीति का केंद्र हुआ करता था. इस कॉलेज में बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के कार्यकर्ता गोपाल फोगावट का दबदबा रहा करता था. गोपाल शराब के धंधे से जुड़ा था, जिसके चलते राजू ठेठ भी गोपाल की शरण में चला गया था.

दूध का व्यापारी बलवारी करने लगा शराब का धंधा

राजू ठेठ ने गोपाल फोगावट के साये में शराब का धंधा भी शुरू कर दिया और इसी दौरान राजू की मुलाकात बलबीर बानूड़ा से हुई. बानूड़ा दूध का व्यापार करता था, लेकिन राजू ठेठ से मिलने के बाद बानूड़ा को पैसे की ऐसी लत लगी कि वह अपार दौलत कमाने के लिए शराब का धंधा करने लगा. फिर आया साल 1998. जब बलबीर बानूड़ा और राजू ठेठ ने मिलकर सीकर में भेभाराम हत्याकांड को अंजाम दिया और यहीं से शुरू हुआ शेखावाटी में गैंगवार का खौफनाक सफर.

राजू और बलवीर ने कायम किया खौफ

1998 से 2004. ये वो दौर था जब शेखावाटी में बलवीर बानूड़ा और राजू ठेठ ने अपना खौफ इस कदर कायम किया कि अगर कोई शेखावाटी में शराब जैसे अवैध धंधे में शामिल हो और वह राजू ठेठ और बलबीर बानूड़ा को संरक्षण का पैसा न दे, तो समझो उसका खेल खत्म.

बानूड़ा के साले की शराब के सेल्समैन के तौर पर एंट्री

साल 2004 में वसुंधरा राजे सरकार के समय राजस्थान में शराब के ठेकों की लॉटरी निकली थी, जिसमें जीण माता इलाके में शराब की दुकान राजू ठेठ और बलबीर बनूडा को मिली थी. शराब की दुकान शुरू हो गई और बलबीर बानूड़ा के साले विजयपाल ने सेल्समैन के रूप में उस पर काम करना शुरू कर दिया. विजयपाल दिनभर शराब की ब्रिकी करता और हर राज शाम को बानूड़ा और ठेठ को हिसाब देता था.

विजयपाल की हत्या के बाद दुश्मनी में बदली दोस्ती

जिस तरह की बचत राजू आमतौर पर दुकान से चाहता था, उसे वह नहीं मिल रही थी. राजू को लगा कि विजयपाल ब्लैक में शराब बेचता है. इसी बात को लेकर राजू और विजयपाल के बीच कहासुनी हो गई. ये कहासुनी इस हद तक बढ़ गई कि राजू ठेठ ने अपने साथियों के साथ मिलकर विजयपाल की हत्या कर दी. विजयपाल की हत्या के बाद राजू और बलबीर बनुदा की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. बलबीर अब अपने साले विजयपाल की हत्या का बदला लेने पर तुला था.

राजू पर गोपाल फोगावट का हाथ था, इसलिए उससे बदला लेना इतना आसान नहीं था. लेकिन रंजिश हर रोज मजबूत हो रही थी. लिहाजा बलवीर बानूड़ा ने राजू से बदला लेने के लिए नागौर जिले के आनंदपाल सिंह से हाथ मिला लिया. बलबीर और आनंदपाल सिंह दोनों दोस्त बन गए और दोनों ने अपना बदला पूरा करने की कसम खाई. हालांकि राजू आनंदपाल और बलबीर से आर्थिक रूप से मजबूत था. इसलिए आनंदपाल और बलवीर ने भी पहले आर्थिक रूप से मजबूत होने का फैसला लिया. लिहाजा दोनों ने शराब और खनन का धंधा शुरू किया. जिसमें दोनों को फायदा हुआ और इसी तरह अपने गिरोह को मजबूत कर लिया.

राजू पर आर्थिक रूप से भी हमला किया

आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा ने राजू के शराब से भरे ट्रकों को लूटना शुरू कर दिया, जिससे ठेठ को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ गया. जून 2006 में पहले राजू के बॉडीगार्ड और गोपाल फोगावट को मारने की योजना बनाई गई और वारदात को अंजाम दिया गया.

राजू ने ली गुरु की हत्या का बदला लेने की कसम

गोपाल की हत्या के बाद राजू ठेठ के अंदर भी बदले की आग सुलगने लगी. गोपाल फोगावट की हत्या का मतलब था राजू के शरीर से ऑक्सीजन की कमी. फोगावट की चिता पर राजू ने बदला लेने की कसम खाई. दूसरी ओर, बलबीर अपने साले विजयपाल की हत्या के समय से ही ठेठ के खून का प्यासा था. दोनों गिरोह पुलिस के साथ लुका-छिपी का खेल खेलते रहे और अपना खौफ बनाए रखने के लिए वारदातों को अंजाम देते रहे. दोनों गैंग साल 2012 तक अंडरग्राउंड रहे और जब 2012 में बलबीर बानूड़ा, आनंदपाल और राजू ठेठ को गिरफ्तार किया गया तो बदले की आग फिर भड़क उठी.

2013 में जेल में हुआ था राजू ठेठ पर हमला

बदला लेने की शुरुआत बलबीर बानूड़ा से होती है. 26 जनवरी 2013 को जब पूरा देश गणतंत्र दिवस के रंग में डूबा हुआ था, तब बानूड़ा के खास दोस्त सुभाष बराल ने सीकर जेल में बंद राजू ठेठ पर हमला किया, लेकिन राजू ठेठ इस हमले में बाल-बाल बच गया.

2014 में हुई बलवीर बानूड़ा की हत्या

लॉरेंस बिश्नोई गैंग का ये है कनेक्शन

शेखावाटी का गैंगवार भले ही कुछ समय के लिए ठंडा पड़ गया, लेकिन लॉरेंस बिश्नोई गैंग धीरे-धीरे राज्य में अपने पैर पसार रहा था. 2022 में ही राजू ठेठ को पैरोल दी गई और 3 दिसंबर (आज) उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्या की जिम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई ग्रुप ने ली है. रोहित गोदारा नाम की फेसबुक आईडी ने जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा की हत्या का बदला पूरा हो गया है. दरअसल, आनंदपाल एनकाउंटर के बाद इस गैंग के सदस्य लॉरेंस बिश्नोई गैंग में शामिल हो गए थे.

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