लखनऊ नगर निगम में महापौर पर लग रहा कमीशन लेकर ठेके देने का बड़ा आरोप

महापौर सुषमा खर्कवाल के संरक्षण में फलीभूत होता भ्रष्टाचारी कई वर्षों से बैठा अपर नगर आयुक्त डा. अरविन्द राव नगर निगम लखनऊ, में कुछ पार्षदों द्वारा भ्रष्टाचार से अर्जित अरबों रूपये की आय से अधिक सम्पत्ति की जाँच गृह मंत्री अमित शाह को ई.डी. और सी.बी.आई.से कराना चाहिए। डॉ.अरविन्द राव अपर नगर आयुक्त द्वारा पकड़ी गयी छुट्टा गायों को कसाईयों को बेचे जाने की जोरदार चर्चा

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नगर निगम में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। वर्तमान में लखनऊ नगर निगम का बजट 2800 करोड़ रूपये से अधिक है। यहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वर्तमान नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह की ईमानदारी पर कोई सन्देह नहीं कर सकता। वह 2015 बैच के आई. ए. एस.अधिकारी हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विशेष रूप से उनको नगर निगम में पद स्थापित किये है। लेकिन उनके अधीनस्थ भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। विगत कुछ दिनों पूर्व में हुए नगर निगम सदन में नगर में कूड़ा उठाने वाली फर्म को लेकर सदन में सरोजनीनगर वार्ड द्वितीय के पार्षद रावत द्वारा नगर आयुक्त पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये थे। जिससे ईमानदार नगर आयुक्त असहज हो गये थे। लेकिन यह भी तथ्य रोचक है कि नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह के ईमानदार होने का क्या फायदा कि उनके अधीनस्थ भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। यह सर्वविदित है नगर निगम के नाली इन्टरलाकिंग तथा रोड के ठेकों में गुणवत्ता के विपरीत 45 प्रतिशत तक कमीशन लिया जा रहा है। यह ठेकेदार स्वयं बयां करते हैं। कहीं-कहीं तो गलियों के निर्माण में पुरानी टाईल्स निकाल कर उसमें नई टाईल्स मिलाकर लगा दी जा रही है और भुगतान प्राप्त कर लिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त संविदा पर कर्मचारियों को रखने वाले संविदा ठेकेदार संविदा कर्मियों का करोड़ों के प्राविडेन्ड फण्ड की धनराशि हजम कर जा रहे हैं। जबकि नगर निगम द्वारा संविदा कर्मियों के वेतन का 13 प्रतिशत नगर द्वारा तथा 10 प्रतिशत संबंधित संविदा कर्मचारी के वेतन से काटकर जमा कराने का प्राविधान है और कर्मचारी राज्य बीमा निदेशालय (ई.एस.आई.सी.) में भी 4.5 प्रतिशत धनराशि उसके वेतन से तथा नगर निगम द्वारा अपने अंश के साथ जमा कराने का प्राविधान है लेकिन यह सब नहीं हो रहा है और कर्मचारियों के साथ अन्याय हो रहा है। इससे कर्मचारियों और उनके परिवार के साथ घोर अन्याय हो रहा है। भ्रष्टाचारी संविदा ठेकेदार खूब फलफूल रहे हैं और ईमानदार नगर आयुक्त इस पर मौन हैं। उन्हें इस पर त्वरित कार्यवाही करना चाहिए।सूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि नगर निगम लखनऊ के महापौर सुषमा खर्कवाल भारी भ्रष्टाचार की गंगा बहाये हुए हैं और भ्रष्टाचार के कीर्तिमान उन्होंने तोड़ दिये हैं। जिसको लेकर नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह असहज रहते हैं और उनके भ्रष्टाचार के आगे नतमस्तक रहते हैं। बताया जाता है कि महापौर सुषमा खर्कवाल की निधि 35 करोड़ रूपये वार्षिक है जिसके द्वारा नगर में विकास कार्य के ठेके अनुमोदित किये जाते हैं। महापौर सुषमा खर्कवाल के भ्रष्टाचार का आलम यह है कि उनके द्वारा खुले आम 15 प्रतिशत कमीशन लेकर धड़ल्ले से नाली, इन्टरलांकिग तथा रोड निर्माण के कार्य ठेकेदारों को अनुमोदित किये जा रहे हैं। जबकि कार्य की गुणवत्ता से उनका कोई लेना-देना नहीं रहता है। इसके अतिरिक्त महापौर सुषमा खर्कवाल का नगर निगम के अन्य आर्थिक कार्यों में भी हस्तक्षेप रहता है। चूंकि नगर आयुक्त की चरित्र पंजिका में प्रविष्टि लिखने का अधिकार महापौर का होता है. इसलिए नगर आयुक्त उनसे भयभीत रहते हैं और चुपचाप बिना इन्क्वारी किये उनकी फाइलों का अनुमोदन कर देते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि नगर आयुक्त ने महापौर के आगे हथियार डाल दिये हैं। उनकी सारी ईमानदारी बेकार है और नगर निगम में चर्चा का विषय भी है। सूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि नगर निगम, लखनऊ में कई वर्षों से अपने रसूख के बल पर जमे हुए भ्रष्टाचारी अपर नगर आयुक्त (पशुपालन), डा. अरविन्द राव को महापौर सुषमा खर्कवाल का पूरा संरक्षण है और वह निर्बाध गति से भ्रष्टाचार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार नगर में घूमने वाले आवारा पशुओं को उसके अधीनस्थ कर्मियों द्वारा पकड़ा जाता है और आवारा पशुओं के लिये बने कान्हा उपवन में उनको नहीं भेजकर उनको कटने के लिये कसाईयों को बेच दिया जाता है। कई बार पशुपालकों द्वारा डा. अरविन्द राव पर पथराव भी किया गया और वह जान छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ लेकिन बताया जाता है कि रसूख के बल पर वह आवारा पशुओं को कटवा रहा है और महापौर का उसे पूरा संरक्षण है। इसकी जाँच हो जाय तो निश्चित रूप से सारे तथ्य उजागर हो जायेंगे। कान्हा उपवन में रखे गये आवारा पशु भूखे तगाने दिखाई पड़ सकते हैं और आँसू बहाते मिल जायेंगे। कान्हा उ 3/5 बिना अनुमति के पत्रकारों के साथ ही साथ किसी का भी जाना वाजत है। बताया जाता है कि नगर निगम लखनऊ क्षेत्र में आवारा कुत्तों की भरमार है जो आये दिन जनमानस को काट लेते हैं और इसकी खबरें समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं जबकि इसके लिए प्रति वर्ष करोड़ रूपये की धनराशि कुत्तों की नसबन्दी हेतु आवंटित की जाती है। लेकिन खेदजनक है कि स्वयं सेवी संस्था (एन.जी.ओ.) को कुत्तों की नसबन्दी की धनराशि आवंटित की जाती है और प्रति वर्ष बंदरबांट कर ली जाती है और ईमानदार नगर आयुक्त द्वारा बिना जांच पड़ताल के उसका भुगतान कर दिया जाता है जबकि उनको इसकी गहनता से जांच करनी चाहिए तथा एन.जी.ओ. के बजाए पशुपालन विभाग को धनराशि आवंटित कर उनसे कुत्तों की नसबन्दी का कार्य कराया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त आर.आर. विभाग, प्रचार विभाग, कर विभाग, नगर निगम के सभी विभागों में भारी भ्रष्टाचार देखा जा सकता है जबकि सबसे रोचक तथ्य यह है कि नगर निगम, लखनऊ में कई पार्षद ऐसे हैं जो दूसरे दलों से भाजपा में आये हैं और पार्षद हैं तथा अरबो रूपये की सम्पत्ति के मालिक हैं। मुम्बई से लेकर श्रीलंका तक उनका नगर निगम के भ्रष्टाचार से अर्जित की हुई धनराशि उन्होंने विनियोजित कर रखी है और उनका भारतीय जनता पार्टी की किसी भी बैठकों से कोई लेना-देना नहीं रहता है तथा विगत 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रचार-प्रसार नहीं करने के कारण भाजपा का मध्य क्षेत्र का विधानसभा प्रत्याशी चुनाव हार गया और सपा का प्रत्याशी चुनाव जीत गया जिससे भाजपा की बहुत किरकिरी हुई। ऐसे पार्षदों को सिर्फ ठेके लेने में और उसके प्रबन्धन में ही दिमाग रहता है। इससे भाजपा कार्यकर्ताओं में काफी रोष रहता है। ऐसे पार्षदों की आय से अधिक सम्पत्ति की जाँच माननीय गृह मंत्री अमित शाह को संज्ञान लेकर ई.डी.व सी. बी.आई.से जाँच कराना चाहिए तभी भ्रष्टाचार उजागर होगा।नगर निगम, लखनऊ में व्याप्त भ्रष्टाचार का संज्ञान नगर विकास मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा तथा प्रमुख सचिव अमृत अभिजात को लेना चाहिए तभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेन्स की नीति प्रभावी होगी।

लखनऊ नगर निगम में करोड़ों के भ्रष्टाचार का खुलासा, बिल्डरों को मुफ्त में बांटी गई सरकारी जमीन

लखनऊ नगर निगम का करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। इसके तहत नगर निगम अधिकारियों ने करोड़ों रुपये की जमीन बिल्डर को फ्री देकर उसकी फाइल गायब करवा दी। नगर आयुक्त ने मामले का संज्ञान लेकर बड़ी कार्रवाई की है। आइए विस्तार से जानते हैं पूरा मामला…

लखनऊ नगर निगम में करोड़ों के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने बताया कि अपर नगर आयुक्त ललित कुमार के कार्यकाल के दौरान मुफ्त में 5.5 करोड़ की सरकारी जमीन बिल्डर को दे दी गई। बिल्डर को जमीन मिलते ही नगर निगम से फाइल भी गायब हो गई। साथ ही लगे हाथ मनमाने तरीके से बिल्डरों को एनओसी भी दे दी गई। नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने बताया कि मामले की जानकारी मिलते ही अपर नगर आयुक्त ललित कुमार से सम्पत्ति विभाग ले लिया गया। अब यह जिम्मेदारी अपर नगर आयुक्त पंकज श्रीवास्तव को दी गई है।

नगर आयुक्त इंद्रजीत स‌िंह ने बताया “नगर निगम के प्रावधान के अनुसार जब किसी को नगर निगम की जमीन दी जाती है तो उसके बदले में बराबर की कीमत की जमीन वापस ली जाती है। आईआईएम रोड पर मुताककीपुर में 10 हजार स्क्वायर फीट नगर निगम और लगभग 5 स्क्वायर फीट सिंचाई विभाग की जमीन पर संप्रिंग गार्डन सोसायटी ने कब्जा कर रखा है। नलकूप सिंचाई विभाग की पानी की टंकी को तोड़कर कब्जा किए जाने पर नलकूप सिंचाई विभाग ने मड़ियांव थाने में संप्रिंग गार्डन सोसाइटी पर मुकदमा दर्ज कराया है।”
उन्होंने बताया कि लखनऊ नगर निगम में करीब 50 या फिर नए सिरे से उनका रैनोवेशन कर दिया गया है। अब नगर निगम ने इन घरों को चिन्हित किया है। इनका हाउस टैक्स नए सिरे से बनेगा। ऐसे में अगर आपने अपना पुराना घर तोड़कर उसका नए तरीके से रैनोवेशन किया है तो खुद नए सिरे से गृहकर निर्धारण करा लें। नगर निगम अगर ऐसा करेगा जुर्माना भी लगाएगा। दरअसल, पिछले वित्तीय वर्ष में सभी दावों के बाद भी करीब 2 लाख 50 हजार से ज्यादा लोगों का हाउस टैक्स जमा नहीं हुआ।
नगर आयुक्‍‌त के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में नगर निगम ने रिकॉर्ड हाउस टैक्स वसूली जरूर की, लेकिन उसके बाद भी करीब 150 करोड़ रुपए बकाया रह गया। अब पता चला है कि जिन 2.50 लाख लोगों ने हाउस टैक्स नहीं दिया है, उनमें करीब 50 हजार घर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं या फिर उनको तोड़कर नया निर्माण हो गया है। इसमें ज्यादातर कमर्शियल निर्माण शामिल हैं, लेकिन अभी भी पुराने के हिसाब से हाउस टैक्स आ रहा है। ऐसे में नगर निगम अब हाउस टैक्स बनाने के लिए सभी घरों को चिह्नित कर नोटिस देने की तैयारी कर रहा है।

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