गाँव शब्द जब मस्तिष्क में आता है तो धारणाएँ विचित्र विचित्र आती है। अपना गाँव कैसा भी हो दुनिया का सबसे सुन्दर गाँव होता है। ऐसे ही बिहार राज्य के गोपालगंज जिले में एक छोटा सा गंवsईं बाजार है करवतही बाजार । बीस पच्चीस अस्त व्यस्त सी दुकानें बाजार होने का भ्रम पैदा करती हैं। किसी स्थान को विशेष बनाने में वहाँ पैदा होने वाले लोग या उनके द्वारा किये जाने वाले कृत्य महती भूमिका निभाते हैं। और यहीं करवतही का सौभाग्य है कि उसके यहाँ कोई ऐसा है जो पिछले कुछ वर्षों से लगातार इस प्रयास में है कि आजके नये वैचारिक विद्रुपता के बीच कोई बड़ी और सकारात्मक लीख बनाई जाय ।
व्यक्ति की बात बाद में , पहले महोत्सव की बात करते हैं। सदानीरा का पांचवा महोत्सव इस वर्ष 26-27 अक्टूबर को मनाया गया । सामान्यतः यह एक दिन का ही आयोजन होता है पर इसबार एक काव्य संध्या एक दिन पहले करके अपनी तैयारियों को परखने का प्रयास किया गया , या शायद कुछ अतिथियों की दूसरे दिन अनुपस्थिति के कारण लाभ लिया गया हो। जो भी हो , आम खाना चाहिए गुठली गिनने का क्या लाभ 😂 ।
आनन्द और अतिरेक में पूरी रात चली काव्य धारा में कवियों और कार्यकर्ताओं के गले बैठ गये और महोत्सव का माहौल बन गया ।
27 अक्टूबर को दूसरे दिन दोपहर 11बजे से कार्यक्रम की शुरुआत पुरस्कार वितरण से हुई ।श्री देवेन्द्र देव (बरेली) को योगेन्द्र प्रसाद योगी पुरस्कार उनके कविता साहित्य में योगदान के लिये तथा श्री ब्रज भूषण मिश्र को पं० शर्मानंद देहाती पुरस्कार उनके कला एवं लोक साहित्य में योगदान के लिये दिया गया ।
इसके उपरांत एक वैचारिक विमर्श शुरू हुआ कि ” धर्म और साहित्य का संबंध ” क्या और कैसा है। इसमें मुख्य रूप से संत श्री मिथिलेश नंदिनी शरण , इटावा से पधारे Kavi Kamlesh Sharma , गाजीपुर से पधारे प्रख्यात लेखक और उपन्यासकार कृपा शंकर मिश्र ‘खलनायक’ सहभागी थे। बातें धर्म की अनेको बिखरी हुई , बहुत सारे विद्वानों द्वारा निरूपित परिभाषाओं से निकलती हुई आम व्यक्ति के लिये लोकाचार में क्या धर्म है वहाँ तक पहुंची ।
संत श्री ने बहुत मार्के की बात कही कि आम व्यक्ति या सोशल मीडिया में जो धर्म दिखता है वह हमारा आचार है जो हर पल बदलता रहता है। जैसे लोग आजकल मान लेते हैं कि टीका , चंदन, चोटी, कोई विशेष वस्त्र धारण करना धर्म है। यदि इसे सत्य मान लेंगे तो स्नान करते ही धर्म समाप्त हो जायेगा, वस्त्र बदलते ही समाप्त हो जायेगा । जबकि धर्म तो सनातन है उसे समाप्त होना ही नहीं है। यह आहार है। अब प्रश्न उठता है कि धर्म है क्या?
धर्म एक विशेष क्षण में नैतिक और मर्यादित आचरण है। जैसे पिता अपने पुत्र को अनुशासित करता है उस समय पिता का धर्म संतान के प्रति लालन पालन के साथ अनुशासन सिखाना है और उसी क्षण संतान का धर्म माता पिता की आज्ञा का बिना किसी तर्क वितर्क के पालन करना है। जैसे जल का धर्म है शीतल होना । आप उसे किसी भी तापमान पर खौलाइये कुछ देर बाद वह शीतल ही हो जावेगा। एक बहुत सामान्य हास्य बोध वाला उदाहरण उन्होंने दिया कि कुछ लोगों को हम बैल , गदहा या उल्लू बोल देते हैं। पर वे उस प्रताति में हैं तो नहीं । हैं तो वे मनुष्य प्रजाति के पर कुछ ऐसे व्यवहार या आचरण उनके द्वारा हो जाता है जो दूसरी प्रजाति का धर्म है और वे उस विशिष्ट विशेषण से शोभित हो जाते हैं। 😂
कुल मिलाकर धर्म आचरण के रूप में निरूपित होता है।
यही हमारे देवताओं ने ऋषि मुनियों नें , मनीषियों ने बताया समझाया है। ज्ञान का धर्म से कोई लेना देना नहीं । क्योंकि राम और रावण केवल आचरण और व्यवहार से अलग अलग निरूपित होते हैं। अब साहित्य और धर्म की बात जब आती है तो यह सर्वमान्य तथ्य है कि साहित्य शुरु ही धर्म से होता है। पूरी दुनिया इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि वेद पृथ्वी के पहले साहित्य हैं और धर्म उसका मूल है। अतः साहित्य का धर्म होना आवश्यक है।
क्योंकि एक साहित्य किसी संप्रदाय का है जिसमें धर्म नहीं है। वह पूरी दुनिया के लिये संकट बना हुआ है। सनातन का व्यक्ति जब धर्म को पूरी तरह आत्मसात करता है तो संत बनता है। जबकि संप्रदाय का व्यक्ति जब उसे आत्मसात करता है तो आतंकवादी ।
दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन था। इसमें कमलेश शर्मा , Priyanka Rai ॐनन्दिनी , चन्दन द्विवेदी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रशांत बजरंगी , ज्ञान प्रकाश आकुल लखीमपुर से , दिल्ली से संजीव मुकेश , डा Nityanand Shukla नीरव , सर्वेश Sarvesh Kumar Tiwari , और गोपालगंज के ही पर बनारसी पहचान वाले अन्तर्राष्ट्रीय कवि Anil Choubey जिन्होंने संचालक की भूमिका निभाई ने मंच को गौरव प्रदान किया । जब चौबे जी मंच पर हों तो आप कुर्सियों पर एक भाव में नहीं बैठ सकते। कवि सम्मेलन की कविता लिखने बैठने पर पूरी एक पुस्तक बन जावेगी । पर कमलेश जी की कविता ” राम हुए हैं कितने और प्रमाण दें।” तथा सर्वेश की कविता ” हे राम हमारा वचन रहा ,हर एक दशानन मारेंगे ” मंच के तेवर बताने के लिये पर्याप्त हैं ।
आनन्द की वर्षा से ओतप्रोत श्रोता मन्त्रमुग्ध हो तालियों की गड़गड़ाहट से करवतही को गुंजायमान कर रहे थे।
तीसरे सत्र में लोक संगीत का कार्यक्रम रहा । जिसमें प्रख्यात लोक कलाकार बिहार सरकार और केन्द्र सरकार द्वारा विशिष्ट सम्मान प्राप्त Uday Narayan Singh का गायन , निर्गुण सम्राट मदन राय तथा विजय बहादुर चौबे का गायन देर रात तक चलता रहा ।
किसी कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप समाज कैसा बनाते हैं। क्योंकि कुछ लोगों का जुटना जिनका मस्तिष्क या भाव एक न हो वह मात्र भीड़ या समूह होता है। पर एक समूह जब एक मस्तिष्क और भाव से जुड़ता है तो वह समाज बनता है। इस मामले में सर्वेश सफल होते रहे हैं।
हां इस बार इस महोत्सव में राजनैतिक हस्तियाँ बहुतायत में शामिल हुईं आज के पैमाने पर यह सफलता की ईकाई मानी जाती है। पर पिछली चार बार के महोत्सव की तुलना में यह कमजोर कड़ी साबित हुई । क्योंकि उनके सम्मान और प्रोटोकॉल निभाने के चक्कर में वैचारिक विमर्श का समय कम हो गया और निरा साहित्य प्रेमी उससे थोड़ा निराश हुआ। पर यह भी एक सामाजिक बाध्यता है कि जहां भीड़ जुटने लगेगी नेताजी मडरायेंगे ही और हमें उन्हें थोड़ा मार्ग तो देना ही पड़ेगा । आने को तो बहुत सारे नेता आये पर बिहार सरकार के मंत्री पासवान, केन्द्रीय राज्य मंत्री सतीशचन्द्र द्विवेदी , और राज्यसभा सांसद तथा नेशनल बार कौंसिल के चेयरमैन मन्नन मिश्र महत्वपूर्ण थे। कहने में कोई संकोच नहीं कि सिर्फ मन्नन मिश्रा ने अपने व्यवहार और व्यक्तव्यों से बड़ी छाप छोड़ी । उनका यह कहना कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रयास होना चाहिए , उचित और कमनीय है।
कुछ वर्ष पहले जब उद्योगपति धीरूभाई अंबानी ने मोबाइल के प्रचार में कहा था कर लो दुनिया मुट्ठी में तो लोग हंस रहे थे। पर आज सच यही है कि दुनिया मोबाइल में समा गयी है। अच्छा बुरा चुनना आपको है। आखिर उसी कैंची से वस्त्रों का कतरब्योंत कर मनीष मल्होत्रा लाखों का गाउन बेचते हैं। और उसी कैंची से कन्हैयालाल का जीवन समाप्त कर दिया जाता है। अब इसमें कैंची का क्या दोष। बिल्कुल इसी तरह सर्वेश ने इस मोबाइल की दुनिया से करवतही को जोड़ दिया है। वहाँ जुटने वाले लोग उनके रक्त संबंधी नहीं है। सब सोशल मीडिया के मित्र हैं पर अब वे परिवार हैं । जो हर सुख दुख में साथ रहना , समाज को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं । तभी तो Lokesh Sharma चंडीगढ़ पुलिस की कड़ी नौकरी से समय चुरा कर इतनी दूर आते हैं। नित्यानन्द शुक्ल हों , कृपाशंकर हों , बृजेश शुक्ला हों , प्रशांत सौरभ हो सब लोग दूर से ही जुटते हैं । करवतहीं के लिये Sarvesh Tiwari Shreemukh एक सौभाग्य हैं। रत्न हैं। देश के दूसरे गांवों को हमसब को उनसे कुछ सीखने की जरूरत है कि जब इस देश में बर्बाद गुलिस्तां करने को नारा लगता हो कि हर घर से अफजल निकलेगा उसकी अपेक्षा यदि हर गाँव से एक सर्वेश निकल आये तो चारो तरफ शान्ति , सौहार्द और साहित्यिक वातावरण हो जाय ।
जय हो सदानीरा ।
सूर्य कुमार त्रिपाठी