अखिलेश के दंभ के चलते मुस्लिम दलित, कांग्रेस सब ने बनायी दूरी

Rajya Sabha Chunav: उत्तर प्रदेश में अखिलेश के 'PDA' में भाजपा ने ऐसे लगाई  सेंध! समझें जातीय समीकरण : Rajya Sabha Chunav BJP Made Big Plan Against  Akhilesh Yadav's PDA Formula Inयूपी उपचुनाव के 9 सीटों के जो परिणाम सामने आये हैं उससे यह साबित हो गया है कि यूपी में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी का पीडीए नाम का जो गुब्बारा उसने फुलाया था, यूपी की जनता ने उसकी हवा निकाल दी है। कुंदरकी जहां 65 फीसद मुस्लिम आबादी है वहां भी भाजपा ने कमल खिला दिया। पहले से ही माना जा रहा था कि यह उपचुनाव भले ही सरकार के भविष्य पर कोई फर्क न डालें लेकिन यह 2०27 की इबारत साफ कर देंगे। 9 में से सात सीटों पर भाजपा का जीतना और सपा का अपने ही घर में पतन । साफ है कि यूपी में बंटेंगे तो कटेंगे चला और सिर्फ यूपी ही नहीं महाराष्ट्र में भी पीएम मोदी से ज्यादा सभाएं योगी आदित्यनाथ की हुईं। अकेले यूपी, महाराष्ट्र ही नहीं झारखंड तक से बंटेगे तो कटंेगे पर जो विमर्श शुरू हुआ पूरे देश की चुनावी सियासत इसी के इर्द-गिदã घूमती नजर आयी।
यूपी में अखिलेश यादव योगी के नारे की तुकबंदी ही करते रह गये और योगी की रणनीति में फंसते चले गये। इस उपचुनाव में 5० फीसदी नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ है। सपा भले कानपुर की सीसामऊ और मैनपुरी की करहल से चुनाव जीतने में सफल हुई हो लेकिन वह उपचुनाव में अपने सीट को बचाने में भी नाकाम रही और चार में से सिर्फ दो सीट पर ही जीत दर्ज कर पाई है। जबकि मीरापुर और कुंदरकी मुस्लिम बाहुल क्षेत्र कुंदरकी में 6०% मुस्लिम मतदाता हैं और मीरापुर में एक लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। इसके बावजूद भी समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। कुंदरकी, मीरापुर और कटेहरी विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित होते थे। कटहरी पर कुर्मी और मुस्लिम समाज के लोग समाजवादी को वोट देते थे। जबकि कुंदरकी में 6०% मुस्लिम मतदाता समाजवादी को वोट देते आ रहे थे। मीरपुर में एक लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी के समर्थन में वोट देते थे। लेकिन इन सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है. कुंदरकी सीट पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को जमकर वोट किया। यही वजह है कि भाजपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। मुसलमान को इस बात की भी शिकायत है कि समाजवादी पार्टी उनके मुद्दे को नहीं उठाती है, सिर्फ वोट बैंक के तौर पर उन्हें इस्तेमाल करती है। यही वजह है कि मुस्लिम मतदाता इस उपचुनाव में बीजेपी की तरफ गया है। जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित होता है वहां पर बीजेपी को जिता कर समाजवादी पार्टी को संदेश दिया है।
चुनाव परिणाम इस बात का साफ इशारा कर रहे हैं सीएम योगी आदित्यनाथ की आक्रामक छवि, धार्मिक एकजुटता का उनका एजेंडा और जातियों में न बंटने वाली उनकी अपील काम कर गई। वोटरों ने बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर अपनी मुहर लगाई। लोकसभा चुनावों के उलट इन चुनावों में भाजपा से छिटका ओबीसी और दलित वर्ग भी उसके साथ आया है। परिणाम बता रहे हैं कि दलितों ने सपा को उस तरह से वोट नहीं किया जैसे उसने लोकसभा के चुनावों में वोट किया था। कांग्रेस की इन चुनावों से दूरी भी सपा के लिए नुकसानदेह और भाजपा के लिए फायदेमंद रहीं। कटेंगे तो बंटेंगे सीएम योगी आदित्यनाथ के द्बारा दिया गया ऐसा नारा है जो यूपी से फूटा और देखते ही देखते पूरे देश में फैल गया। पीएम मोदी द्बारा इसी को एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे कहकर बोला गया। यूपी के उपचुनावों के महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे यह बता रहे हैं कि इस नारे ने जमीन तक में काम किया है। सीएम योगी ने इन चुनावों की कमान खुद अपने हाथ में ली। उन्होंने हर छोटी-बड़ी रैली में धार्मिक एकजुटता की बात कही। बंटेंगे तो कटेंगे विचारधारा के स्तर पर भाजपा की कोई नई लाइन नहीं है। भाजपा सदैव ही हिदुओं के एकजुट रहने की बात कहती आई है लेकिन इन चुनावों में इस नारे ने एक अलग तरह का असर किया। चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि लोगों ने जाति के ऊपर धर्म को चुना। लोकसभा से उलट भाजपा इस बार अति आत्मविश्वास के मूड में नहीं थी। उसने सोशल इंजीनियरिग के अनुसार उम्मीदवारों को टिकट दिए। एक-एक सीट के अनुसार रणनीति बनाई। पार्टी के कार्यकताã सुस्त न हों इसके लिए लगातार बैठकों का दौर जारी रहा। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने भी पक्ष में जनमत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
इन चुनावों में यूपी में जाति जनगणना और संविधान का मुद्दा गायब रहा। कांग्रेस के इन चुनावों में दूरी बनाने का भी प्रदेश में इसका असर रहा। संविधान और जातीय जनगणना को प्रमुखता से उठाने वाले राहुल गांधी यूपी से पूरी तरह से गायब रहे। सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन न होने के बाद से कांग्रेस ने राज्य से दूरी बनाई। बड़े नेताओं के साथ कांग्रेस के स्थानीय नेता भी चुनाव प्रचार में सपा के साथ नहीं दिखे।
परिणाम इस बात का इशारा कर रहे हैं कि सपा दलितों को फिर से अपने पाले में रखने में नकामयाब रही है। लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच जबर्दस्त जुगलबंदी देखने को मिली। कई सीटों पर राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने संयुक्त जनसभाएं कीं। इस चुनाव में गठबंधन में सही सीटें न मिल पाने की वजह से कांग्रेस ने चुनावों से किनारा कर लिया। कांग्रेस चार सीटें मांग रही थी लेकिन सपा ने उसे दो सीटें दीं। जब यह गठबंधन नहीं हुआ तो कांग्रेस की तरफ से यह कहा गया कि ये प्रत्याशी सपा के प्रत्याशी न होकर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी हैं और कांग्रेस भी इनका चुनाव प्रचार करेंगी। पर ऐसा नहीं हुआ। राहुल और प्रियंका ने पूरी तरह से यूपी से दूरी बनाई। राहुल की एक भी जनसभा सपा प्रत्याशी के समर्थन में नहीं हुई। केंद्रीय नेतृत्व के साथ-साथ राज्य की लीडरशिप भी इन चुनावों में सपा प्रत्याशियों से दूर दिखी। इन चुनावों में कांग्रेस ने एक रणनीतिक दूरी बनाई। कांग्रेस खुद को दूर रखकर यह देखना भी चाह रही थी कि बिना गठबंधन के सपा कैसा परफॉर्म करती है। चुनाव परिणामों ने एक बात साफ कर दी है फिलहाल सपा और कांग्रेस दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। अगर अखिलेश यादव ने दंभ न दिखाया होता तो शायद परिणाम में परिवर्तन होता लेकिन अखिलेश ने खुद को ऐसा विजेता मान लिया था जो सपने में ही पूरी सेना का सफाया कर देता है लेकिन जब जगता है तो खुद को सेना से घिरा हुआ पाता है।

 

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