मुंबई। आर्थिक मोर्चे पर भारत को बड़ी कामयाबी मिली है. वाणिज्यिक ऋण तथा अनिवासी भारतीयों के जमा में कमी और मूल्यांकन के प्रभावों के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में देश का बाहरी कर्ज 19.3 अरब डॉलर यानी 3.6 प्रतिशत कम होकर 510.40 अरब डॉलर पर आ गया.
रिजर्व बैंक ने सोमवार को कहा, “सितंबर 2018 के अंत तक देश का बाहरी कर्ज मार्च 2018 के स्तर से 3.60 प्रतिशत कम हो गया. इसका कारण वाणिज्यिक कर्ज तथा अनिवासी भारतीयों का जमा कम होना रहा है.” रिजर्व बैंक ने कहा, “बाहरी कर्ज में गिरावट का मुख्य कारण अमेरिकी डॉलर का भारतीय रुपये तथा अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में मूल्यांकन कम होना भी रहा है.”
रुपये तथा अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर का मूल्यांकन कम होने से बाहरी कर्ज के मामले में देश को समान अवधि के दौरान 25.4 अरब डॉलर का फायदा हुआ है. केंद्रीय बैंक ने कहा, “मूल्यांकन के प्रभाव को हटा दिया जाए तो सितंबर अंत तक बाहरी कर्ज में 19.3 अरब डॉलर के बजाय 6.10 अरब डॉलर की कमी आई है.”
मार्च 2018 तक देश का बाहरी कर्ज 529.70 अरब डॉलर पर था. कुल बाहरी कर्ज में वाणिज्यिक ऋण 37.1 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा कारक रहा है. इसके बाद अनिवासी भारतीयों के जमा की हिस्सेदारी 23.9 प्रतिशत तथा अल्पकालिक ऋण की हिस्सेदारी 19.9 प्रतिशत का स्थान रहा है.
सितंबर 2018 के अंत तक एक साल या इससे अधिक की मूल परिपक्वता अवधि वाले दीर्घकालिक ऋण में 21.40 अरब डॉलर की कमी आई और यह 406.10 अरब डॉलर पर आ गया. मानक परंपरा के हिसाब से देश के बाहरी कर्ज के आंकड़े एक तिमाही छोड़कर हर दूसरी तिमाही में जारी किए जाते हैं.