लखनऊ। समाजवादी पार्टी के अंदर और बाहर इस बात की बड़ी चर्चा है कि शिवपाल यादव आख़िर क्या करेंगे? क्या वे कोई नई पार्टी बनायेंगे या फ़िर किसी और पार्टी के नेता बन जायेंगे? समाजवादी पार्टी में अब शिवपाल चाचा की चलती नहीं है. भतीजा अखिलेश यादव से उनका छत्तीस का रिश्ता तो जगज़ाहिर है. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के संपर्क में है शिवपाल यादव. उनके क़रीबियों की मानें तो शिवपाल यादव अगला लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में हैं. झंडा और बैनर अभी तय नहीं है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी में उनके लिए रास्ता अब बंद हो चुका है.
शिवपाल यादव अब भले ही समाजवादी पार्टी के एक सामान्य विधायक भर रह गए हैं लेकिन उनकी सक्रियता कभी कम नहीं हुई. हर हफ़्ते वे अपने गृह जिले इटावा का दौरा करते हैं. यूपी के अलग अलग इलाक़ों में शिवपाल यादव किसी न किसी बहाने जाते रहते हैं. समर्थकों से भेंट मुलाक़ात होती रहती है. अब तो वे लगातार लखनऊ के लोहिया ट्रस्ट में भी बैठते हैं.
समाजवादी पार्टी के ऑफ़िस में उनके लिए कोई जगह तो बची नहीं है. इसके बग़ल में ही लोहिया ट्रस्ट का दफ़्तर है. यहाँ हर दिन वे दो तीन घंटे दरबार लगाते हैं. यूपी के अलग अलग हिस्सों से आए लोगों से मिलते मिलाते हैं. मुलायम सिंह यादव जब पहली बार यूपी के सीएम बने थे तो ये ट्रस्ट बना था.
शिवपाल यादव इस ट्रस्ट के सचिव हैं. पिछले साल रामगोपाल यादव समेत रामगोविंद चौधरी और अहमद हसन जैसे अखिलेश के समर्थकों को चुन चुन कर लोहिया ट्रस्ट से बाहर कर दिया गया था. अब ये ट्रस्ट शिवपाल यादव और उनके समर्थकों का नया ठिकाना बन गया है.
शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से संबंध ठीक करने की बहुत कोशिशें कीं. मुलायम सिंह यादव के कहने पर उन्होंने ये सब किया लेकिन सभी प्रयास बेकार साबित हुए. राज्यसभा चुनाव के दौरान लखनऊ के होटल ताज में दो बार डिनर पार्टी हुई थी. शिवपाल दोनों ही मौक़ों पर मौजूद रहे.
पहले दिन डिनर पार्टी विधायक राकेश प्रताप सिंह ने दी थी. शिवपाल तय समय पर पहुँचे और अखिलेश यादव को गले भी लगाया. लोगों ने समझा सारे गले शिकवे दूर हो गए हैं. जया बच्चन राज्य सभा की उम्मीदवार बनाई गई थीं. शिवपाल यादव दूसरे दिन भी डिनर में शामिल हुए. अखिलेश के अनुरोध पर समाजवादी पार्टी के लिए वोट भी किया.
इसी साल लखनऊ में समाजवादी पार्टी के ईद मिलन समारोह में भी शिवपाल पहुँचे. पहले ये बात सामने आई थी कि आगरा में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद शिवपाल को महासचिव बना दिया जायेगा. वे दिल्ली जाकर राजनीति करेंगे लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ नहीं. अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरियां ख़त्म नहीं हुईं.
फिर मौक़ा आया समाजवादी पार्टी के प्रधान महासचिव रामगोपाल यादव के जन्मदिन का. रामगोपाल और शिवपाल रिश्ते में चचेरे भाई लगते हैं. मुलायम सिंह के घर में मचे घमासान ते दौरान दोनों अलग अलग गुटों में थे. शिवपाल अपने बड़े भाई मुलायम के साथ रहे.
रामगोपाल यादव ने अपने भतीजे अखिलेश का साथ दिया लेकिन रामगेपाल के जन्मदिन पर इस बार सबसे पहले शिवपाल ही उन्हें बधाई देने पहुँचे. रामगोपाल ने भी बर्थ डे केक काट कर सबसे पहले शिवपाल को ही खिलाया. ऐसा लगा राम और भरत का मिलन हो रहा है लोगों को लगा कि समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक होने लगा है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. रिश्तों की तनातनी क़ायम रही.
इसी बीच शिवपाल यादव के समर्थकों ने सेकुलर मोर्चा बना लिया. समाजवादी पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके फ़रहत खान इसके कर्ता धर्ता हैं. कई जिलों में इस मोर्चा का गठन भी हो चुका है. राज्य भर के शिवपाल यादव के समर्थकों को इस मोर्चा से जोड़ा जा रहा है.
जनसंपर्क अभियान कर शिवपाल यादव भी अपनी राजनैतिक ताक़त तौल रहे हैं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से भी उनके अच्छे रिश्ते रहे हैं. दोनों कई बार मिल भी चुके हैं. महीनों से हाशिए पर चल रहे अमर सिंह की बीजेपी में पूछ बढ़ गई है.
हाल में ही लखनऊ के एक कार्यक्रम में पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी अमर सिंह का ज़िक्र किया. अमर सिंह और शिवपाल यादव के भाई वाले रिश्ते को कौन नहीं जानता है. कुल मिला कर बात यही है कि चाचा और भतीजे का मिलन मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है. अब ऐसे हालात में शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के रास्ते अलग हो जायें तो कोई अचरज की बात नहीं होगी.