नई दिल्ली। कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट (ICJ) में भारत को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है. 15-1 बहुमत के आधार पर जजों ने भारतीय पक्ष की सभी दलीलों को मानते हुए पाकिस्तान से कहा कि वह इस केस पर पुनर्विचार करे. कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर रोक लगाई जाए. उनको काउंसलर सुविधा उपलब्ध कराई जाए. सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने इस फैसले को पूरी तरह से भारत की जीत बताया है.
वहीं दूसरी तरफ इससे पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय जगत में किरकिरी हुई है और ये केस उसके लिए शर्मिंदगी का सबब बना. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किस आधार पर ये कहा जा सकता है कि इस केस में भारत की पूरी तरह से जीत हुई? इस संदर्भ में आइए 5 बिंदुओं पर डालते हैं एक नजर:
1. कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई.
2. पाकिस्तान के राष्ट्रीय न्यायाधिकार क्षेत्र की सीमाएं बताई गईं
3. आईसीजे ने पाकिस्तान मिलिट्री ट्रायल को स्वीकार्य नहीं माना. पाकिस्तानी मिलिट्री की छवि एक बार फिर धूमिल हुई.
4. अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने माना कि पाकिस्तान ने विएना संधि का उल्लंघन किया. इस तरह से भारतीय तर्क को स्वीकार किया गया. कुलभूषण को काउंसलर सुविधा उपलब्ध कराए जाने का निर्देश कोर्ट ने दिया.
5. भारत के कानूनी तर्कों को एकदम सही माना गया. आईसीजे में केस को ले जाने को भी सही ठहराया गया.
कुलभूषण का PAK के आतंकी संगठन ने ईरान से किया था अपहरण
कुलभूषण केस में भारत शुरू से कहता आ रहा है कि पाकिस्तान के जासूसी के झूठे केस में उनको फंसाया. उनको पाकिस्तान से पकड़ा ही नहीं गया बल्कि ईरान से उनका अपहरण किया गया था.
इस केस के बारे में भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि कुलभूषण जाधव का ईरान के चाबहार से पाकिस्तान के एक आतंकी संगठन ने अपहरण किया था और बाद में उनको पाकिस्तान में ले जाकर खुफिया एजेंसी आईएसआई के हवाले कर दिया गया. सूत्रों के मुताबिक ये भी बताया कि आईएसआई ने जैश-अल अदल संगठन का इस्तेमाल कुलभूषण को पकड़ने के लिए किया. भारतीय एजेंसियों के पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि किस तरह पाक एजेंसियों ने जाधव को जासूसी के झूठे केस में फंसाया.
मार्च 2016 में हुई गिरफ्तारी
पाकिस्तान ने 3 मार्च 2016 को उन्हें गिरफ्तार करने का दावा किया. पाकिस्तान का आरोप है कि कुलभूषण जाधव एक बिजनेसमैन नहीं बल्कि जासूस हैं. अप्रैल 2017 में पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट ने कुलभूषण को मौत की सजा सुनाई थी. मई 2017 में भारत में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में यह मामला उठाया था.