नई दिल्ली। अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने के लिए इमरान खान सरकार के पास बस पांच महीने का समय है। अगर जून, 2020 तक पाकिस्तान सरकार आतंकवादियों और आतंकी संगठनों को मिलने वाले फंड को रोकने के लिए विश्व बिरादरी को संतुष्ट करने वाला कदम नहीं उठाता है तो उसके खिलाफ ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं जो उसकी बेहाल अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकते हैं। यह कदम फाइनेंशिएशल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) उठाएगी जिसकी पेरिस में शुक्रवार को बैठक समाप्त हुई है।
कार्ययोजना पर अमल नहीं किया तो काली सूची में शामिल होने का खतरा
पिछले पांच दिनों की बैठक के बाद एफएटीएफ की तरफ से जो कुछ कहा गया है उससे साफ है कि पाकिस्तान के सिर पर काली सूची में शामिल होने की तलवार लटकी रहेगी। इसमें कहा गया है कि जून, 2018 में पाकिस्तान को 28 कार्यों की सूची सौंपी गई थी, लेकिन जनवरी, 2020 तक सिर्फ 14 मुद्दों पर कदम उठाए गए हैं। पाकिस्तान जून, 2018 से ही ग्रे लिस्ट यानी निगरानी सूची में शामिल है। चीन की मदद के बावजूद वह इस सूची से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
पूरी तरह रोकनी होगी मनी लांड्रिंग
आतंकी संगठनों के कामकाज पर रोक के अलावा पाकिस्तान सरकार को जो कदम उठाने होंगे उनमें मनी लॉंड्रिंग को पूरी तरह से रोकना, गैरकानूनी तरीके से राशि हस्तांतरित करने की हर तरह की गतिविधियों को रोकना, दूसरे देशों में ब्लैक मनी को भेजना या दूसरे देशों से ब्लैक मनी के प्रवाह को रोकना, आतंकी फंडिंग को रोकने में सरकारी व कानूनी एजेंसियों को मजबूत बनाना और उनकी तरफ से ठोस कदम उठाने जैसे कदम शामिल होंगे। यह भी साबित करना होगा कि उसकी एजेंसियों ने आतंकी फंडिंग को रोकना शुरू कर दिया है, इसके साफ तौर पर उदाहरण भी देने होंगे। यह भी दिखाना होगा कि अभी तक आतंकी संगठनों को जो मदद मिली थी या फंड मिला था उसे अब जब्त किया जा रहा है।
तय समय में पूरी करनी ही होगी कार्ययोजना
एफएटीएफ पाकिस्तान से पुरजोर शब्दों में कहता है कि वह पूरी कार्ययोजना को निर्धारित समय सीमा में समग्रता से पूरा करे। अगर ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके तहत सभी सदस्य देशों को कहा जाएगा कि वे पाकिस्तान के साथ अपने कारोबारी और वित्तीय रिश्तों पर खास ध्यान दें।
काली सूची में गया तो नहीं मिलेगा कर्ज
काली सूची में जाने पर पाकिस्तान में निवेश करने या वहां सामान्य आयात-निर्यात करने की लागत भी बढ़ जाएगी। कोई भी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी उसे कर्ज देने से हिचकेगी। विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कह चुके हैं कि ऐसा होने पर पाकिस्तान पर सालाना 10 अरब डॉलर का बोझ पड़ेगा।
सिर्फ तुर्की ने की मदद
कूटनीतिक सूत्रों के मुताबिक पेरिस बैठक में भी पाकिस्तान को तुर्की के अलावा और किसी भी देश से साफ तौर पर मदद नहीं मिली। हालांकि चीन ने उसकी तरफ से अभी तक उठाए गए कदमों की सराहना की, लेकिन आगे और कदम उठाने की सलाह भी दी।