मुंबई। एक ओर जहां सभी राजनीतिक पार्टियां अगले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अभी से कोशिशें शुरू कर चुकी हैं वहीं महाराष्ट्र कांग्रेस से एक अप्रत्याशित खबर सामने आ रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ऐसा माना जा रहा है कि महाराष्ट्र कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अशोक चव्हाण कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा हो सकते हैं. जिसके लिए वह खुद भी विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं.
अशोक चव्हाण की पत्नी को मिल सकता है टिकट
आपको बता दें कि मोदी की लहर में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से कांग्रेस के सिर्फ दो सांसद ही जीत कर संसद पहुंचे थे. कांग्रेस की तरफ से जीत का सेहरा नांदेड से अशोक चव्हाण और हिंगोली से राजीव सातव के सिर बंधा था. गौरतलब है कि पिछले दिनों जब अशोक चव्हाण को जनसंघर्ष यात्रा का जिम्मा दिया गया तब ही यह साफ हो गया था कि वह राज्य के राजनीति में ज्यादा रुचि रखते हैं. अब नांदेड से अशोक चव्हाण की पत्नी को टिकट देने की बात चल रही है. यहां आपको यह भी बता दें कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच कुछ ही महीनों का अंतर होता है.
महाराष्ट्र में है गठबंधन की राजनीति का अजीबोगरीब खेल
महाराष्ट्र की राजनीति में गठबंधन का रहा है अजीबोगरीब खेल वहां पार्टियां लोकसभा चुनावों में तो गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने को तरजीह देती हैं लेकिन जब बात विधानसभा चुनावों की आती हैं तो सब अकेले ही मैदान में उतरना चाहते हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी और शिवसेना ने एक साथ चुनाव लड़ा था तो वहीं इनको टक्कर देने के लिए कांग्रेस और एनसीपी एक साथ आई थी. हालांकि जनता को बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन ही पसंद आया. हालांकि इस बार ऐसा माना जा रहा है कि एनसीपी और कांग्रेस के बीच विधानसभा चुनावों के लिए भी गठबंधन हो सकता है.
लोकसभा में गठबंधन को ‘हां’ लेकिन विधानसभा चुनाव में ‘न’
पिछले चुनावों की बात करें तो 48 लोकसभा सीटों में 23 सीटों पर बीजेपी और 18 सीटों पर शिवेसना विजयी हुई थी. वहीं दूसरी ओर एनसीपी को 4 और कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. जबकि महाराष्ट्र विधानसभा के 288 विधानसभा सीटों के लिए 15 अक्टूबर 2014 को हुए चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी. बीजेपी को कुल 122 सीटें मिली थीं. दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी शिवसेना जिसे कुल 63 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें हासिल हुई थीं. इन चुनावों में 7 निर्दलीय भी जीते थे जबकि 13 सीटें अन्य राजनीतिक पार्टियों के खाते में गई थीं.