नई दिल्ली। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद एक्जिट पोल के नतीजों ने दलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कई एक्जिट पोल में कड़े मुकाबले या त्रिशंकु विधानसभा की बात कही गई है. वहीं दूसरी तरफ इन राज्यों के छोटे दलों को कुछ सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. लिहाजा अप्रत्याशित रूप से छोटे दल हाशिए से निकलकर चर्चा के केंद्र में आ रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक मुख्य दलों के बड़े नेता इस कारण ही इन क्षेत्रीय दलों से संपर्क करने लगे हैं.
दरअसल इससे पहले मार्च में कर्नाटक विधानसभा में चुनाव हुए थे. वहां पर बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. लेकिन बाद में कांग्रेस ने क्षेत्रीय दल जेडीएस के साथ समझौता कर बीजेपी की उम्मीदों को झटका दे दिया. नतीजा यह हुआ कि बहुमत से महज सात सीटें दूर बीजेपी अपेक्षित आंकड़ा नहीं जुटा पाई और चुनावों में तीसरे पायदान पर रही जेडीएस के नेता मुख्यमंत्री बन गए.
मध्य प्रदेश
इस कड़ी में मध्य प्रदेश में यदि किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो बसपा, गोंडवाना गोमांतक पार्टी और निर्दलीयों पर सबकी निगाहें टिकी होंगी.
छत्तीसगढ़
अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन किया. बसपा और जनता कांग्रेस ने चुनाव पूर्व गठबंधन भी किया था. ऐसे में बीजेपी या कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलने पर निर्दलीयों के साथ इन दलों का महत्व बढ़ सकता है.
तेलंगाना
इसी तरह तेलंगाना में त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में एआईएमआईएम और बीजेपी की भूमिका बढ़ जाएगी. असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पहले से ही सत्तारूढ़ टीआरएस के साथ गठबंधन में है. इस बीच चुनाव बाद बीजेपी ने कहा है कि यदि मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो बीजेपी समर्थन दे सकती है लेकिन इसके साथ ही कहा कि उससे पहले टीआरएस को एआईएमआईएम का साथ छोड़ना होगा.
मिजोरम
इसी तरह मिजोरम में कांग्रेस और विपक्षी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के बीच कांटे का मुकाबला बताया जा रहा है. ऐसे में यदि कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला तो नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी के रणनीतिकार हिमंता बिस्वा सरमा की भूमिका अहम हो सकती है. हालांकि कांग्रेस नेता और मिजोरम के मुख्यमंत्री ललथनहवला को भी जबर्दस्त रणनीतिकार माना जाता है.