महाराष्ट्र के सियासी संकट में क्यों खुलकर सामने आने से बच रही है बीजेपी?

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद उद्धव ठाकरे सरकार पर संकट के बादल मंडराने रहे हैं. ऐसे में सरकार बनाने से महज एक कदम दूर बीजेपी अपने सियासी पत्ते खोलने से बच रही. बीजेपी खुलकर सामने आने के बजाय फूंक-फूंककर कदम रखती नजर आ रही है और उद्धव सरकार के अपने आप ही गिरने का इंतजार कर रही है. बीजेपी किसी भी दशा में उद्धव सरकार गिराने का आरोप नहीं लेना चाहती. बीजेपी सतर्क है और जोर देकर कह रही है कि इस विद्रोह से उसका कोई लेना-देना नहीं है, यह शिवसेना का आंतरिक मामला है.

श‍िवसेना में बगावत का ब‍िगुल बजाकर एकनाथ श‍िंदे पार्टी के दो तिहाई के करीब व‍िधायक लेकर गुजरात और अब असम में डेरा जमाए बैठे हैं. बीजेपी एक तरफ खुद से इस घटनाक्रम को श‍िवसेना का अंदरुनी मामला बता रही है जबकि दूसरी तरफ बागी व‍िधायकों के ठहरने और सुरक्षा के इंतजाम बीजेपी शास‍ित गुजरात और असम में क‍िए गए हैं. व‍िधायकों की सुरक्षा ऐसी है क‍ि कोई बाहरी पर‍िंदा भी पर नहीं मार सकता. ऐसे में इस स‍ियासी घमासान से अगर क‍िसी को फायदा होने वाला है तो वह एकमात्र पार्टी बीजेपी ही है.

उद्धव ठाकरे के हाथों से निकलती सत्ता को देखते हुए भी बीजेपी न तो खुलकर सामने आ रही हैं और न ही सरकार बनाने में जल्दबाजी दिखा रही. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि बीजेपी उद्धव सरकार को गिराकर शिवसेना को सहानुभूति लेने और मराठा कार्ड खेलने देने का भी मौका नहीं देना चाहती. दूसरी बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि 2019 वाली महाराष्ट्र और 2020 वाली राजस्थान वाली गलती नहीं दोहराना चाहती.

साल 2019 में एनसीपी नेता अजित पवार के साथ बीजेपी ने सरकार बनाने की कोशिश की थी. पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस को कुर्सी तो मिली थी, लेकिन वह मात्र 80 घंटे ही पद पर रह पाए थे. इससे बीजेपी को अच्छी खासी फजीहत का सामना करना पड़ा था. इसी कटु अनुभव के चलते इस बार बीजेपी ठोस संभावना न बनने तक खुद को दूर रख रही है, क्योंकि दोबारा से बीजेपी उस गलती को नहीं दोहराना चाहती.

वहीं, दूसरी बड़ी वजह बीजेपी की यह है कि शिवसेना के बागी विधायक मुंबई लौटने पर कहीं कुछ वापस उद्धव ठाकरे खेमे में न लौट जाए. इस तरह की घटना राजस्थान में सचिन पायलट मामले में बीजेपी देख चुकी है. कांग्रेस ने उस समय भाजपा पर राज्य में गहलोत सरकार को अस्थिर करने और उसके विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश करने के आरोप लगाए थे. कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में सफल रही थी. इसी तर्ज पर महाराष्ट्र मामले में शिवसेना और एनसीपी इसी इंतजार में है कि बागी विधायक मुंबई लौटे. शरद पवार ने कहा कि मुंबई आने पर स्थिति बदलेगी तो उद्धव ठाकर ने कहा कि शिवसेना के विधायक हमारे सामने आकर बात करें.

बीजेपी भी बखूबी तरीके से समझ रही है कि हिंदुत्व के पिच पर भले ही शिवसेना से खुद को आगे कर ले, लेकिन मराठी अस्मिता के नाम पर उससे आगे नहीं निकल सकती. महाराष्ट्र की सियासत में मराठी अस्मिता के विरोधी का ठप्पा लगाकर बहुल लंबी सियासी पारी नहीं खेली जा सकती. शिवसेना अब उसी दिशा में अपना दांव चल रही है और मराठी अस्मिता को ही सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकी है. इसीलिए बीजेपी वेट एंड वाच के मूड में है और किसी तरह की कोई भी जल्दबाजी नहीं दिखाना चाहती?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *