जब सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा- तो क्या आप मानते हैं कि मकानों पर बुलडोज़र चलाना गलत है?

फोटो : सोशल मीडियानई दिल्ली। बात-बात पर बुलडोजर चलाने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को बुलडोजर चलाने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने का विरोध करना उलटा पड़ गया। दरअसल, एक घर पर बुलडोजर चलाने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने पर उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा की गई आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, “तो आप सहमत हैं कि घरों पर बुलडोजर चलाना गलत है?”

जस्टिस संजय किशन कौल ने यूपी के एडिशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) आरके रायजादा से पूछा। जस्टिस संजय किशन कौल संभवतः आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए यूपी अधिकारियों द्वारा की जा रही “बुलडोजर कार्रवाई” की रिपोर्टों की ओर इशारा कर रहे थे। जस्टिस कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फसाहत अली खान नामक व्यक्ति की जमानत को रद्द कर दिया गया था, जिस पर 2016 में रामपुर में बुलडोजर का उपयोग करके एक व्यक्ति के घर को जबरदस्ती ध्वस्त करने और घर से 20,000 रुपये लूटने का आरोप था।

हाईकोर्ट ने जमानत को रद्द करने के आधार के रूप में उसके खिलाफ अन्य आपराधिक मामलों की लंबित का हवाला दिया था। याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि उनके खिलाफ चुनाव के दौरान दायर मामले “राजनीति से प्रेरित” थे।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा- “वे कह रहे हैं कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है लेकिन परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। सभी एफआईआर राजनीति से प्रेरित हैं, चुनाव के समय दर्ज की गई हैं।”

इस पर जस्टिस एसके कौल ने एएजी से पूछा, “तो आप सहमत हैं कि मकानों पर बुलडोजर चलाना गलत है? तो आप निश्चित रूप से मकानों पर बुलडोजर चलाने के सिद्धांत का पालन नहीं करेंगे? क्या हमें आपका बयान दर्ज  करना चाहिए कि आप कहते हैं कि मकानों पर बुलडोजर चलाना गलत है? आपने अभी तर्क दिया कि मकानों पर बुलडोजर चलाना गलत है।”

एएजी ने हंसते हुए कहा- “मेरी दलील इस मामले तक ही सीमित है। मैं इससे आगे नहीं बढ़ूंगा।”

गौरतलब है कि, पिछले साल दंगों जैसे मामलों में आरोपी व्यक्तियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्यों में अधिकारियों द्वारा की गई “बुलडोजर कार्रवाई” को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं थीं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अधिकारी कानूनी मुकदमे के बाद उनका अपराध स्थापित होने से पहले ही आरोपियों को दंडित करने के लिए न्यायेतर और असंगत कार्रवाइयों का सहारा ले रहे हैं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा विध्वंस गतिविधियों को अंजाम न दे।

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