चीन की अर्थव्यवस्था को मारा लकवा, एक झटके में खत्म हुआ 40 साल का वर्चस्व, जानिए क्यों?

chinese economyबीजिंग। चीन की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। इसका असर पूरी दुनिया पर महसूस किया जा रहा है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पिछले कुछ साल से लगातार नीचे गिर रही है। अब हाल की प्रॉपर्टी क्राइसिस ने स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ दिया है। इसका असर अब चीन के फाइनेंशियल सिस्टम पर पड़ना शुरू हो गया है। चीनी अर्थव्यवस्था ने अतीत में महत्वपूर्ण चुनौतियों पर काबू पाया है, लेकिन वर्तमान में उसे जिन आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है उनमें एक के साथ दूसरी जुड़ी हुई हैं। यही कारण है कि लगातार आर्थिक विफलता के इस कॉकटेल ने चीन के 40 साल लंबे सफल विकास मॉडल को पूरी तरह से तहस-नहस करना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि चीनी अर्थव्यवस्था को राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बीमारी लग गई है, जिसके जरिए वह आक्रामक नीतियों के जरिए चीन को सुपरपावर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

क्या मंदी की ओर बढ़ रहा है चीन

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वर्षों से प्रॉपर्टी के क्षेत्र पर चीन की अत्याधिक निर्भरता और उसकी सख्त कोविड नीति ने आर्थिक वृद्धि में सबसे ज्यादा बाधा डाली है। यह इस हद तक कि उसे अपनी विकास दर को बनाए रखने के लिए सरकार से बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन की जरूरत है। चीन की बिगड़ती आर्थिक स्थिति और देश की बाजार पर इसके असर ने वैश्विक स्तर पर भय का माहौल पैदा कर दिया है, जिससे विदेशी निवेश का दायरा काफी कम हो गया है। इस बीच कई वैश्विक कंपनियां जो अभी तक मैन्यूफैक्चरिंग को लेकर चीन पर निर्भर थीं, वो तेजी स भारत, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों में निवेश कर रही हैं।

चीनी अर्थव्यवस्था कैसे हो रही तबाह

चीन अभी भी पूरी दुनिया में वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग का हब बना हुआ है। लेकिन, चीन की पुरानी होती इंडस्ट्री और बूढे वर्कफोर्स ने भारत को एक एडवांटेज दे दिया है। भारत लगातार वैश्विक निर्माताओं को अपने देश में निवेश करने के लिए मना रहा है। इसके अलावा भारत के पास काफई बड़ी संख्या में कार्यबल भी है, जिसने अपने काम की बदौलत खुद को दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते देश के रूप में स्थापित किया है। इसमें चीन के बिगड़ते विदेशी संबंधों ने भी बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। अमेरिका के साथ चीन के व्यापार युद्ध ने पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है। यहां तक कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सहयोगियों के साथ इसके संबंधों पर भी असर पड़ा है।

मंदी में प्रवेश कर रही चीनी अर्थव्यवस्था

हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों ने संकेत दिया है कि चीन मंदी के एक लंबे चरण में प्रवेश कर रहा है। आशंका है कि चीन की यह मंदी दशकों नहीं तो वर्षों तक चल सकती है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बार मंदी सिर्फ आर्थिक कमजोरी का दौर नहीं है और यह सचमुच चीनी अर्थव्यवस्था को तोड़ सकती है। आशंका है कि इस मंदी के कारण चीन की अर्थव्यवस्था कम से कम 25 फीसदी तक सिकुड़ सकती है। अगर ऐसा होता है तो इसे चीन के लिए बड़ी त्रासदी के तौर पर देखा जाएगा। मंदी आने से चीन को अपने तमाम विकास कार्यों को रोकना पड़ेगा, जिसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव भी शामिल है।

चीन के कर्ज में 300% की वृद्धि

चीन जिस जोखिम का सामना कर रहा है उसका एक हिस्सा उसके कर्ज में भारी वृद्धि से संबंधित है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 की पहली तिमाही में चीन का कुल डेब्ट टू जीडीपी अनुपात 279 प्रतिशत था। इसके अलावा, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार और राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों के विभिन्न स्तरों पर चीन का कुल कर्ज 2022 तक देश की जीडीपी का लगभग 300 प्रतिशत हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह उच्च ऋण वर्षों से बुनियादी ढांचे और संपत्ति बाजार में अत्यधिक निवेश के साथ-साथ घटती मांग और बढ़ती कीमतों का परिणाम है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *