ज्ञानवापी केस: मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, वाराणसी कोर्ट ने मामला सुनवाई योग्य माना

लखनऊ। ज्ञानवापी केस में वाराणसी कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने उस मामले को पोषणीय माना है और इसी आधार पर याचिका को खारिज किया है. मुस्लिम पक्ष की तरफ से जोर देकर कहा गया था कि ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस याचिका पर सुनवाई संभव है. इसी वजह से मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज किया गया है.

जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले की सुनवाई बीते 14 नवंबर को सिविल जज सीनियर डिविजन महेंद्र कुमार पांडे की अदालत ने की थी. तब फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था. सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया था कि जिला जज की अदालत में श्रृंगार गौरी मामला नियमित सिर्फ पूजा को लेकर था, जबकि इस केस में ज्ञानवापी मस्जिद के टाइटल को लेकर है. इसलिए उन्हें पूरी उम्मीद थी कि यह मुकदमा कोर्ट खारिज कर देगा. लेकिन अभी के लिए कोर्ट इस मामले में आगे भी सुनवाई करने जा रहा है.

यहां ये समझना भी जरूरी है कि सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष द्वारा चार प्रमुख मांगे रखी गई थीं. उन मांगों में तत्काल प्रभाव से भगवान आदि विश्वेश्वर शंभू विराजमान की नियमित पूजा प्रारंभ करना, संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों का प्रवेश प्रतिबंधित करना, संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को देना, मंदिर के ऊपर बने विवादित ढांचे को हटाना शामिल है.

अब इन मांगों को माना जाता है या नहीं, ये आने वाले दिनों में सुनवाई के बाद स्पष्ट होगा, लेकिन हिंदू पक्ष के लिए राहत की बात ये है कि कोर्ट इस मामले में अब सुनवाई करने जा रहा है. मुस्लिम पक्ष चाहता था कि सुनवाई ना हो, उस मांग को खारिज कर दिया गया है. वैसे एक तरफ वाराणसी के फॉस्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई होगी, दूसरी तरफ अगले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में भी अहम सुनवाई होने वाली है.

सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा एक मामला

असल में सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर एक याचिका दायर की गई है. वो याचिका भी ज्ञानवापी मामले से जुड़ी हुई है. उस केस में केंद्र सरकार को 12 दिसंबर तक अपना जवाब दाखिल करना होगा. उसके बाद अगले साल जनवरी में मामले की सुनवाई होगी. द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 की धारा 3 कहती है कि धार्मिक स्थलों को उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा, जिसमें वह 15 अगस्त 1947 को था. अगर ये सिद्ध भी होता है कि मौजूदा धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके अभी के वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता.

 

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