विदेश मंत्री ‘लापता’ हो गए और किसी को कुछ पता नहीं, क्यों छिन कांग की बर्खास्तगी बना रहेगा रहस्य

विदेश मंत्री 'लापता' हो गए और किसी को कुछ पता नहीं, क्यों छिन कांग की बर्खास्तगी बना रहेगा रहस्यचीन ने विदेश मंत्री छिन कांग को बर्खास्त करके सीनियर नेता वांग यी को इस पद पर फिर से नियुक्त किया है। इस नियुक्ति के साथ ही राष्ट्रपति शी चिनपिंग के करीबी विश्वासपात्र से जुड़े दुर्लभ घटनाक्रम का अंत हो गया। छिन करीब एक महीने से सार्वजनिक रूप से नजर नहीं आए हैं। छिन को हटाए जाने को लेकर कई तरह की अटकलें लग रही हैं। इनमें वांग यी के साथ विदेश नीति को लेकर गंभीर मतभेद और उनके विवाहेतर संबंधों से जुड़े गपशप भी शामिल हैं। कुछ एक्सपर्ट छिन को हटाने का श्रेय अमेरिका के साथ उनकी ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति को देते हैं। छिन के जनता की नजरों से ओझल रहने और बैठकों से दूर रहने के कारण कयास लगाए जाने लगे कि वह स्वस्थ नहीं हैं। बाद में भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल होने के अलावा चीनी पत्रकार के साथ उनके कथित संबंध की अफवाहें भी फैलीं।

जुलाई की शुरुआत से छिन सार्वजनिक कार्यक्रमों से नदारद हैं। इसे लेकर न तो भारत या किसी पश्चिमी पावर को उन्हें हटाने के पीछे की राजनीति के बारे में कोई ठोस जानकारी है। ऐसा लगता है जैसे कि छिन को हटाने का रहस्य अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तिजोरियों में बंद हो चुका है। सिस्टम में इस तरह की अपारदर्शिता पर केवल आश्चर्य ही किया जा सकता है, क्योंकि किसी के पास छिन को हटाने का कोई वास्तविक जवाब नहीं है। इसे लेकर तो केवल मीडिया में अटकलें लगाई जा रही हैं। यह लोकतांत्रिक भारत से बिल्कुल अलग है, जहां किसी भी मंत्री को सरकार के मुखिया की ओर से बर्खास्त किया जाता है। इसे लेकर मीडिया में छोटी से छोटी जानकारी भी सामने आ जाती है। उसी वक्त न्यूज टीवी टॉक शो में बर्खास्तगी को लेकर गहन चर्चा होने लगती है।

भारत या उसके सहयोगियों को जब तक चीनी शासन की ओर से किए गए किसी भी बड़े फैसले के पीछे वास्तविक उत्तर नहीं मिल पाते, तब तक क्वाड देशों के लिए चीन को समझना बहुत मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में सवाल खड़ा होगा कि उभरते बीजिंग का मुकाबला करने को लेकर क्या बात की जाए। यह चीनी सिस्टम की अपारदर्शिता है जो बीजिंग को एक तरह से शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी बनाती है। ऐसे में चीनी मीडिया की ओर से किए जा रहे दुष्प्रचार पर ध्यान देने के बजाय, भारत को बीजिंग में संसाधनों में निवेश करने की जरूरत है। इससे कम से कम शी जिनपिंग शासन द्वारा लिए गए फैसले के पीछे का सही आइडिया लग सकेगा।

क्या हम जानते हैं कि 1962 में भारत पर हमला करने का फैसला किसने लिया था? क्या हमें मई 2020 में पैंगोंग त्सो में PLA के युद्ध के पीछे के राजनीतिक कारणों की जानकारी है? या फिर हम 2017 में डोकलाम में घुसपैठ से पहले चीनी ट्रैक के बारे में जानते हैं? साफ है कि जब तक भारत या उसके सहयोगियों को संदेह रहेगा कि चीन में फैसले कैसे लिए जाते हैं, तब तक राष्ट्रपति जिनपिंग हमेशा लोकतांत्रिक दुनिया को हैरान करते रहेंगे।

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